नव नालंदा महाविहार, नालंदा में हिंदी पखवाड़ा , 2025 का भव्य शुभारंभ
नालंदा। भारतीय संस्कृति और साहित्य के गौरव स्थल, नव नालंदा महाविहार , नालंदा में हिंदी पखवाड़ा 2025 का भव्य शुभारंभ समारोह धूमधाम से संपन्न हुआ। यह आयोजन सत्तपर्णी सभागार, आचार्य नागार्जुन संकाय भवन में हुआ। हिंदी भाषा के महत्त्व, उसके समकालीन उपयोग, और सांस्कृतिक चेतना के संवर्धन को ध्यान में रखते हुए यह आयोजन एक प्रेरणादायक संगम बना।
कार्यक्रम की शुरुआत दीप- प्रज्वलन और पुष्प- अर्पण से हुई, जिसके पश्चात् डॉ. न. द. तिवारी एवं डॉ. धम्मज्योति ने मंगल पाठ प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् मंच पर अतिथियों का स्वागत कर उन्हें सम्मानित किया गया।
संयोजक प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' ने स्वागत-भाषण में हिंदी भाषा के सामाजिक-सांस्कृतिक महत्त्व पर गहराई से विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि हिंदी केवल संवाद का माध्यम नहीं बल्कि भारतीय समाज का सशक्त बन्धन है। पखवाड़े का उद्देश्य युवाओं में भाषा के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना, साहित्यिक नवप्रवृत्तियों को प्रोत्साहित करना और विभिन्न संस्कृतियों के मध्य संवाद स्थापित करना है।
उन्होंने यह भी कहा कि समकालीन युग में हिंदी का उपयोग केवल परंपरागत सीमाओं तक नहीं बल्कि विज्ञान, तकनीक, सामाजिक विमर्श और वैश्विक संवाद का भी माध्यम बनना चाहिए। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण , सांस्कृतिक विविधता , डिजिटल संस्कृति , लोक संस्कृति, सांस्कृतिक संकट से मुक्ति, संस्कृति संरक्षण , परम्परा , सांस्कृतिक नवाचार , सांस्कृतिक नवाचार में हिन्दी आगे है।
मुख्य अतिथि प्रो. प्रभाकर सिंह ने कहा कि लोक से शास्त्र की यात्रा होती है। भाषा किसी पाबंद की मोहताज नहीं है। भाषा व साहित्य अनुभव की समृद्धि है। उन्होंने बताया कि हिंदी आज भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रतिनिधि बन चुकी है। वैश्वीकरण की प्रक्रिया में हिंदी का सामाजिक न्याय, तकनीकी नवाचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में उपयोग बढ़ा है। उन्होंने युवाओं को शोध कार्य, सृजनात्मक लेखन, डिजिटल साहित्य और तकनीकी लेखन की ओर प्रेरित किया। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदी का संवर्धन सभी नागरिकों की जिम्मेदारी बन चुकाक़ है। उनका व्याख्यान समय के साथ भाषा के विकास और वैश्विक संवाद के प्रति हिंदी के नए आयामों पर आधारित था।
कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने हिंदी भाषा के ऐतिहासिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्त्व पर विचार व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि हिंदी भारतीय सभ्यता का अभिन्न अंग है जो न केवल साहित्य, कला और संस्कृति का संवाहक है बल्कि सामाजिक समरसता और राष्ट्रीय एकता की भी नींव है। कुलपति महोदय ने यह भी बताया कि नव पीढ़ी को भावनात्मक प्रेम के साथ-साथ हिंदी का व्यावहारिक उपयोग भी करना चाहिए। हिन्दी कोई मातमी धुन नहीं है। अंग्रेज़ी सीख कर कोई उच्चतर नहीं हो जाता। भाषाएं जितनी सीखें , अच्छा है। हिन्दी के प्रति गौरव का भाव होना चाहिए।
उन्होंने विश्वविद्यालय में हिंदी साहित्य, शोध कार्य, सांस्कृतिक कार्यक्रम और तकनीकी पहल के महत्त्व पर जोर दिया। कुलपति ने उपस्थित जनों से हिंदी के संवर्धन में सक्रिय भागीदारी की अपील की।
प्रो. हरे कृष्ण तिवारी , हिन्दी विभागाध्यक्ष ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत करते हुए समस्त अतिथियों, वक्ताओं, विद्वानों, आचार्यों और छात्र- छात्राओं का आभार व्यक्त किया। उन्होंने इस आयोजन के सफल आयोजन में योगदान देने वाले सभी सहयोगियों को सराहा। साथ ही उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि हिंदी पखवाड़ा केवल एक उत्सव नहीं अपितु यह भारतीय सभ्यता और सांस्कृतिक चेतना को नवजीवित करने का सशक्त प्रयास है।
कार्यक्रम का समापन राष्ट्रभक्ति गीत से हुआ, जिसने वातावरण में गौरव और उल्लास का संचार किया। इसके बाद कुलपति मुख्य अतिथि प्रो. प्रभाकर सिंह तथा अन्य गण्यमान्य व्यक्तियों द्वारा वृक्षारोपण कर हिंदी और पर्यावरण संवर्धन का प्रतीक स्थापित किया गया।
अंत में सभी अतिथि, शिक्षक, छात्र और साहित्यप्रेमियों ने विश्वविद्यालय सांस्कृतिक संवाद और परस्पर मिलन का आनंद लिया। हिंदी पखवाड़ा , 2025 ने स्पष्ट रूप से यह संदेश दिया कि हिंदी केवल भाषा नहीं बल्कि वह भारतीय संस्कृति का संवाहक, सामाजिक समरसता का प्रतीक और नव पीढ़ी के लिए भविष्य का मार्गदर्शक बनकर उभर रही है।