नव नालंदा महाविहार को राजभाषा निरीक्षण में सफलता


पटना - संसदीय राजभाषा समिति की पहली उप-समिति की महत्त्वपूर्ण निरीक्षण बैठक पटना में सम्पन्न हुई। बैठक में नव नालंदा महाविहार, नालंदा को अपने राजभाषाई कार्यान्वयन में सफलता प्राप्त करने पर समिति द्वारा प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया। 

बैठक में नव नालंदा महाविहार की ओर से कुलपति प्रोफेसर सिद्धार्थ सिंह , प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव 'परिचय दास' , प्रोफेसर , हिन्दी एवं संयोजक, राजभाषा , प्रो. रूबी कुमारी , कुलसचिव व नीतीश कुमार , लेखाधिकारी ने भाग लिया।

 संस्कृति मंत्रालय की ओर से डॉ. अरविंद कुमार, संयुक्त सचिव व मनोज चौधरी, उपनिदेशक , राजभाषा तथा संसदीय समिति की ओर से इरफान खाँ, वरिष्ठ शोध अधिकारी एवं अनूप साव सम्मिलित हुए।  


पालि–हिन्दी शब्दकोश का लोकार्पण

इस अवसर पर समिति के सदस्यों ने नव नालंदा महाविहार से प्रकाशित ‘पालि–हिन्दी शब्दकोश’ (द्वितीय भाग, सातवाँ खण्ड) का लोकार्पण किया।

समिति के उपाध्यक्ष भर्तृहरि महताब ने ग्रंथ की विशेष प्रशंसा करते हुए कहा—

यह शब्दकोश न केवल भाषा के अध्ययन में सहायक होगा, बल्कि भारतीय बौद्ध परम्परा की गहराई को हिन्दी जगत तक पहुँचाने का ऐतिहासिक कार्य भी करेगा।”

इस लोकार्पण समारोह में अनेक सांसद उपस्थित रहे, जिनमें प्रमुख थे—

 कृति देवी देबबर्मन

 अजीत माधवराव गोपछड़े

 विश्वेश्वर हेगड़े कागेरी

 राजेश वर्मा

 राम चन्दर जांगड़ा

 किशोरी लाल



इन सभी ने एक स्वर से यह माना कि नव नालंदा महाविहार ने राजभाषा हिन्दी को प्रोत्साहित करने और बौद्ध साहित्य के संरक्षण में अनुकरणीय योगदान दिया है।

महाविहार के कुलपति प्रो. सिद्धार्थ सिंह ने ‘पालि–हिन्दी शब्दकोश’ को महाविहार की सबसे महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक बताया। उनके शब्दों में-

यह शब्दकोश नालंदा की प्राचीन विद्वत्ता और आधुनिक शैक्षणिक प्रतिबद्धता का संगम है। महाविहार का यह प्रकाशन विरल और सर्वाधिक योगदानपरक है।”

समारोह में हिन्दी विभाग के प्रोफेसर एवं संयोजक , राजभाषा प्रो. रवीन्द्र नाथ श्रीवास्तव ‘परिचय दास’ तथा कुलसचिव प्रो. रूबी कुमारी भी उपस्थित रहे। दोनों ने इस उपलब्धि को महाविहार के इतिहास में एक मील का पत्थर बताया।

गौरतलब है कि नव नालंदा महाविहार की स्थापना बौद्ध अध्ययन और शोध को आगे बढ़ाने के लिए की गई थी। समय के साथ यह संस्थान न केवल बौद्ध अध्ययन का वैश्विक केंद्र बन चुका है बल्कि राजभाषा हिन्दी के संवर्द्धन में भी लगातार महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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