उ0प्र0 पुरातत्त्व विभाग में आज अभिरुचि पाठ्यक्रम के अंतर्गत व्याख्यान का आयोजन


लखनऊः डॉ. अनिल कुमार, प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास एवं पुरातत्व विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय ने “भारतीय प्रागैतिहासिक संस्कृति” एवं “भारतीय आद्यैतिहासिक संस्कृतियां” विषयों पर आज पीपीटी के माध्यम से व्याख्यान प्रस्तुत किए।

प्रथम सत्र में उन्होंने बताया कि भारतीय प्रागैतिहासिक संस्कृतियाँ मानव जीवन की प्रारम्भिक अवस्थाओं का प्रतिबिंब हैं। इस काल में पुरापाषाण, मध्यपाषाण एवं नवपाषाण संस्कृतियों का विकास हुआ, जिनमें शिकार-संग्रह से कृषि एवं पशुपालन तक की यात्रा, गुफा-निवास, सूक्ष्म उपकरणों का निर्माण, मिट्टी के बर्तन तथा मेगालिथिक स्मारकों का प्रचलन विशेष उल्लेखनीय है।

द्वितीय सत्र में उन्होंने आद्यैतिहासिक काल पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इस काल में ताम्रपाषाण संस्कृतियों का उदय हुआ, जिनमें मालवा, जोर्वे एवं आहड़ संस्कृति प्रमुख हैं। इस युग की विशेषताएँ: ताम्र व पत्थर दोनों का प्रयोग, ग्राम-आधारित जीवन, धातु-उपयोग तथा कुम्हारी कला का विकास रहीं।

डॉ. कुमार ने स्पष्ट किया कि भारतीय प्रागैतिहासिक एवं आद्यैतिहासिक संस्कृतियाँ मानव जीवन की यात्रा: शिकार-संग्रह से लेकर कृषि, पशुपालन एवं ग्राम-आधारित समाज तक को दर्शाती हैं। इन संस्कृतियों की तकनीकी व सांस्कृतिक प्रगति ने आगे चलकर हड़प्पा जैसी उन्नत नगरीय सभ्यता का मार्ग प्रशस्त किया।

इस अवसर पर डॉ. मनोज यादव, सहायक पुरातत्व अधिकारी, उ०प्र० राज्य पुरातत्त्व विभाग ने अतिथि वक्ता को पौधा एवं स्मृति-चिन्ह प्रदान कर स्वागत एवं सम्मान किया।

कार्यक्रम का संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन बलिहारी सेठ, प्रकाशन सहायक द्वारा किया गया।

इस अवसर पर लगभग 200 प्रतिभागियों की उपस्थिति रही। साथ ही पुरातत्व निदेशालय के अभयराज सिंह, संतोष कुमार सिंह, आशीष कुमार, अकील खान, मयंक, अभिषेक कुमार द्वितीय, हिमांशु, निर्भय एवं अन्य विभागीय कर्मचारी भी उपस्थित रहे।

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