इटहिया का सावन मेला सीमांत क्षेत्रों में सतत और समावेशी पर्यटन को बना रहा सशक्त-जयवीर सिंह



लखनऊ: उत्तर प्रदेश के महराजगंज जिले की निचलौल तहसील स्थित प्रसिद्ध इटहिया मेला 11 जुलाई से प्रारंभ हो चुका है, जो 09 अगस्त, 2025 तक चलेगा। भारत-नेपाल सीमा पर बसा यह क्षेत्र सावन के महीने में आस्था, सांस्कृतिक उत्सव और ग्रामीण पर्यटन का जीवंत स्वरूप प्रस्तुत करता है। यहां प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंच रहे हैं। 

पर्यटन विभाग द्वारा इटहिया गांव में ग्रामीण पर्यटन के अंतर्गत होम-स्टे की व्यवस्था की गई है, जहां शांत वातावरण में पर्यटक ग्रामीण परिवेश का आनंद उठा सकते हैं और आराम के पल बिता सकते हैं।  

यह जानकारी उत्तर प्रदेश के पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने शुक्रवार को दी। उन्होंने बताया, पर्यटन विभाग द्वारा इटहिया गांव में ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए 10 होमस्टे चिह्नित किए गए हैं, जिनमें से 04 होमस्टे इस समय संचालित हैं और शेष 06 का विकास कार्य प्रगति पर है। ये सभी होम-स्टे स्वच्छ, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध और समुदाय आधारित अनुभव देंगे। श्रद्धालु/पर्यटक गांव के स्थानीय परिवारों के बीच रहकर यहां की जीवनशैली को करीब से अनुभव कर सकते हैं।

छोटी गंडक नदी के किनारे स्थित इटहिया शिव मंदिर में इस वर्ष का शिवरात्रि मेला धार्मिक आस्था के साथ-साथ सामाजिक और आर्थिक विकास की नई तस्वीर पेश कर रहा है। स्वयंभू शिवलिंग के दर्शन के लिए भारत और नेपाल दोनों देशों के श्रद्धालु प्रतिदिन यहां जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों में सांस्कृतिक एकता और धार्मिक साझेदारी को मजबूती मिल रही है।

इस वर्ष का मेला केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित न रहकर, ग्रामीण पर्यटन, पारंपरिक हस्तशिल्प और महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के रूप में एक नई पहचान बना रहा है।

इटहिया मेला देखने आने वाले पर्यटक ग्रामीण परिवेश के बीच नौकायन अनुभव, हस्तनिर्मित शिल्प वस्तुओं के स्टॉल और पूर्वांचली व्यंजन से सजे फूड ज़ोन मेले की शोभा को और भी बढ़ा रहे हैं। इटहिया, बेढिहरी और गिरहिया गांवों की महिलाएं अब मूंज शिल्प, कांथा कढ़ाई, अगरबत्ती निर्माण जैसी विधाओं में प्रशिक्षित होकर मेले में अपने उत्पाद बेच रही हैं। यह पहली बार है जब कई महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता का सीधा अनुभव मिल रहा है।

महराजगंज का सुप्रसिद्ध इटहिया मेला अपने विशेष व्यंजन के लिए भी लोकप्रिय है। मेले में गर्मा-गर्म लिट्टी-चोखा, मौसमी भरता, ठेकुआ और पेड़ा जैसे पारंपरिक व्यंजन स्थानीय महिलाओं द्वारा तैयार किए और परोसे जा रहे हैं। मसालों की सुगंध और देसी अनाज की महक हवा में घुलकर एक अनोखा अनुभव देती है।

साथ ही, पर्यटकों को लमूहां तालाब में नौकायन का भी अवसर मिलेगा। ग्रामीण पर्यटन गतिविधियों का संचालन प्रशिक्षित स्थानीय युवाओं द्वारा किया जा रहा है, जो पर्यटकों को प्राचीन मंदिर, भेरिहरी गाँव का झूला पुल और क्षेत्र की लोककथाओं से परिचित कराते हैं।

पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जयवीर सिंह ने बताया कि इटहिया का सावन मेला यह दिखाता है कि आस्था और परंपरा किस तरह विकास और सीमा पार सहयोग के सशक्त माध्यम बन सकते हैं। हमने इस मेले को ग्रामीण महिलाओं, कारीगरों और स्थानीय युवाओं को सशक्त करने का माध्यम बनाया है। ऐसे आयोजनों से न केवल विरासत सुरक्षित हो रही है, बल्कि सीमांत क्षेत्रों में सतत और समावेशी पर्यटन की संभावनाओं को भी सशक्त बना रहे हैं।

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