हे वीणा वरदायिनी
कैसे तुम्हें सुनाऊं मां
आकुल कंठ का प्रणय निवेदन
कैसे तुझे बतलाऊं मां ।
चिर अतृप्त अनुरागी मन का
है विह्वल आहवान ये
अपनी संवेदनाएं हदय की
कैसे तुम तक पहुंचाऊं मां ।
हृदय द्रवित और विह्वल चिर है
कैसे इसको दिखलाऊं मां
नैन सजल हैं मन भारी है
कैसे तुम को बतलाऊं मां ।
हे जननी! तुम कृपा करो अब
ज्ञान चक्षु दो मुझको मां
अवरुद्ध कंठ से हम पुकारते
करूं निवेदन सुन लो मां ।
पहले ही बड़ी देर भई अब
और ना देरी लगाओ मां
कर जोरि याचना कर रही संजू
अब तो गले लगा लो मां ।
ममता की तुम मूरत हो और
विद्या की भंडार हो मां
इतनी शक्ति दो मुझको तुम
जग में ख्याति पाऊं मां ।
हे वीणा पाणी! विनय सुनो तुम
वरद हस्त सिर पे धरो मां
व्याकुल कंठ से करूं प्रार्थना
चित्त से करो दूर अंधेरा मां ।
मेरी कलम में इतनी शक्ति दे दो
सच को मैं लिख पाऊं मां
हे वर दायिनी ! कृपा करो अब
मुझको राह दिखाओ मां ।
संजुला सिंह " संजू"
जमशेदपुर